शुक्रवार, 27 अक्तूबर 2017

मौन

मौन

तोते टिटियाते नहीं
आलसी पग भी
दिन भर पड़ा रहता है
 अपने छोटे टोकरे में
मछलियाँ तो पहले ही 
बेजुबान नाचती हैं 
इधर से उधर 
घर में सभी प्राणी
जैसे बुद्ध के सानिध्य से उठ
चले आयें हों
खामोशियाँ खिलखिलाती नहीं 
अब तारक मेहता का कोई 
चश्मा लुभाता नहीं
स्प्राइट से सौ गुणा ज्यादा 
कूल हो चुके हैं हम

कभी कभार घर का कोई 
सदस्य फरमाईश के पत्थर 
फेंकता है घर की शांत झील में
बुद्धू बक्से और छ:इंच की स्क्रीन के
आगे पैर पसारे सभी 
रहते हैं नत मस्तक, मौन ! 
     प्रीति राघव चौहान 





बुधवार, 25 अक्तूबर 2017

Kabhi Jindagi se Milo

कभी ज़िन्दगी से मिलो जो तुम
उसे इत्तला करना ज़रूर
कभी मैं खफा कभी वो खफा
कितनी दफा मरना हुज़ूर

जो सुबह मिली तो थी धानी सी
सरे शाम से थी सयानी सी
परिजात सी मैं बिखर गई
गिला आज भी है उसे जरूर

दीन ओ धरम भी निभाये हैं
और गीत ए फाग भी गाये हैं
कभी कहकशां सी थी चार सूँ
अब कहकशे काहे है गुरूर

ऐ ज़िन्दगी तेरा पता
तेरा पता है जो लापता
मेरा भी नमन हर बार है
मिली थी कभी बाकी है नूर
         प्रीति राघव चौहान

शुक्रवार, 13 अक्तूबर 2017

deen dharam

न मन्दिर न मदीना
मेरा मरकज़ मुझी से है
मुझे तेरे दीन औ धरम
तेरी मंजिल से क्या लेना
       Priti Raghav Chauhan

गुरुवार, 5 अक्तूबर 2017

Facebook

सैल्फी, मनपसन्द लोग लोगों के लाईक्स पीज़ा, बर्गर दुनिया भर की फ्लाइट फ्लाइटों की डिटेल कविता पर कॉपीराईट दिन रैन बे-पैन दुनिया लिखती है इस हसीन दुनिया में जानकी रंभा दिखती है कुछ मतवाले मोर्चा संभाले उर्वशी बन दिखते हैं रोज़ सैंकडों किस्से झूठे लाईक्स पर बिकते हैं कमैंट मिला तो खजाना मिला समझो लाईक करने का बहाना मिला समझो लाईक पर लाईक शिष्टाचार है जो भौंके बस अपनी उसका नहीं उपचार है बकबकियों से जनता करती शनि नमन आँख मींच कर दूजे पर करती तुरत गमन टैग चाहते सब यहाँ टैग ना होता कोय अपनी ढपली ठोककर खुशी खुशी हैं सोय भूले बिसरे सब यहाँ मिले किनारे बैठ जिन ढूंढा तिन पाइया गहरे फेसबुक पैठ प्रीति राघव चौहान

लक्ष्य को पाना है

माँ, गिरुँ अगर मैं बार बार
तुझको हर बार उठाना है
तुम रहना बन मशाल साथ
मुझे अपने लक्ष्य को पाना है

भूल भुलैया मेले ठेले
माना मुझको भरमायेगें
तेरी मशाल के जिन्दा जुगनू
हर पल राह दिखायेंगे

सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर
मैं आगे बढ़ता जाऊँगा
मानवता का परचम
पूरे जग में फहराऊँगा

लक्ष्य दिया तूने सेवा
दक्ष मुझे होना होगा
तप्त धरा से पीड़ा को
समूल नष्ट करना होगा

माँ हाथ मेरे माना छोटे
हर पीड़ित का बोझ उठाना है
सर्वश्रेष्ठ चिकित्सक  बनकर
मुझे अपने लक्ष्य को पाना है 
      प्रीति राघव चौहान 

धरापुत्र

हे मनु पुत्र,
तुम सृष्टि रचियता
बनो इसमें संदेह नहीं
धरा पुत्र कहलाओगे
ये इस धरिणी के
मूक वचन..

मंगल विजय करो
या बुलैट गति से घूमों तुम
बम बनाओ दुनिया भर के
या सागर माथा चूमों तुम
सकल सृष्टि से बेकल हो
ढूढोगे इस भू का स्पंदन
धरा पुत्र कहलाओगे
ये इस धरिणी के
मूक वचन...

गति में लय है माना
हैं रोमांचकारी ऊँचाई
विस्मयकारी लहरों की  ताल
ना तुम्हें तनिक लुभा पाई
नंगे पैरों ओस पे चलके
करोगे वसुधा का वंदन
धरा पुत्र कहलाओगे
ये इस धरिणी के
मूक वचन...

माना तुम मुझसे
न किसी कोण
से मिलते हो
पुरुषार्थ तुम्हें प्रिय है सुत
ना धैर्य मही  सा रखते हो
मानो न मानो मनु पुत्र
तुम होंगे मुझमें ही भग्न
और धरा पुत्र कहलाओगे
ये इस धरिणी के
मूक वचन...
              प्रीति राघव चौहान

















बुधवार, 4 अक्तूबर 2017

Puruskar nahi Samman dain

हाड़ मांस का बना रे
पूतला काहे करे अभिमान
बावरे काहे करे अभिमान
चन्द रोज़ में ढह जाना है
ऊँचा तेरा मकान
बावरे काहे करे अभिमान

घिसट रही है घर में काया
लुटा रहा तू बाहर माया
जा घर मात पिता की आहें
वो घर जिन्दा शमशान
बावरे काहे करे अभिमान

उनकी झुर्रियाँ दी ना दिखाई
दर दर खोजे जाकर साईं
खाली थाली लेकर बैठे
करे रोज अपमान
बावरे काहे करे अभिमान

खून दिया धरमार्थ कमाया
जग में ऊँचा नाम कमाया
नाम तेरा उनके होंठों पर
तू बनता अनजान
बावरे काहे करे अभिमान

मातपिता को तुम ना रुलाओ
पैर छुओ माथा सहलाओ
पुरस्कार ना कोई चाहिये
दे दो बस सम्मान
बावरे काहे करे अभिमान
             प्रीति राघव चौहान