यात्रा सिर्फ वो नहीं जो सुदूर देशों का दर्शन कराये । यात्रा वो है जिसमें आप स्वयं से मिलें, अपने मैं की जड़ तक पहुँचें उसे मर्दित कर आगे बढ़ें और दुनिया को एक नई दिशा दे पायें। तो चलें अनन्तयात्रा पर..
शुक्रवार, 27 अक्तूबर 2017
मौन
बुधवार, 25 अक्तूबर 2017
Kabhi Jindagi se Milo
कभी ज़िन्दगी से मिलो जो तुम
उसे इत्तला करना ज़रूर
कभी मैं खफा कभी वो खफा
कितनी दफा मरना हुज़ूर
जो सुबह मिली तो थी धानी सी
सरे शाम से थी सयानी सी
परिजात सी मैं बिखर गई
गिला आज भी है उसे जरूर
दीन ओ धरम भी निभाये हैं
और गीत ए फाग भी गाये हैं
कभी कहकशां सी थी चार सूँ
अब कहकशे काहे है गुरूर
ऐ ज़िन्दगी तेरा पता
तेरा पता है जो लापता
मेरा भी नमन हर बार है
मिली थी कभी बाकी है नूर
प्रीति राघव चौहान
शुक्रवार, 13 अक्तूबर 2017
deen dharam
न मन्दिर न मदीना
मेरा मरकज़ मुझी से है
मुझे तेरे दीन औ धरम
तेरी मंजिल से क्या लेना
Priti Raghav Chauhan
मंगलवार, 10 अक्तूबर 2017
गुरुवार, 5 अक्तूबर 2017
लक्ष्य को पाना है
माँ, गिरुँ अगर मैं बार बार
तुझको हर बार उठाना है
तुम रहना बन मशाल साथ
मुझे अपने लक्ष्य को पाना है
भूल भुलैया मेले ठेले
माना मुझको भरमायेगें
तेरी मशाल के जिन्दा जुगनू
हर पल राह दिखायेंगे
सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर
मैं आगे बढ़ता जाऊँगा
मानवता का परचम
पूरे जग में फहराऊँगा
लक्ष्य दिया तूने सेवा
दक्ष मुझे होना होगा
तप्त धरा से पीड़ा को
समूल नष्ट करना होगा
माँ हाथ मेरे माना छोटे
हर पीड़ित का बोझ उठाना है
सर्वश्रेष्ठ चिकित्सक बनकर
मुझे अपने लक्ष्य को पाना है
प्रीति राघव चौहान
धरापुत्र
हे मनु पुत्र,
तुम सृष्टि रचियता
बनो इसमें संदेह नहीं
धरा पुत्र कहलाओगे
ये इस धरिणी के
मूक वचन..
मंगल विजय करो
या बुलैट गति से घूमों तुम
बम बनाओ दुनिया भर के
या सागर माथा चूमों तुम
सकल सृष्टि से बेकल हो
ढूढोगे इस भू का स्पंदन
धरा पुत्र कहलाओगे
ये इस धरिणी के
मूक वचन...
गति में लय है माना
हैं रोमांचकारी ऊँचाई
विस्मयकारी लहरों की ताल
ना तुम्हें तनिक लुभा पाई
नंगे पैरों ओस पे चलके
करोगे वसुधा का वंदन
धरा पुत्र कहलाओगे
ये इस धरिणी के
मूक वचन...
माना तुम मुझसे
न किसी कोण
से मिलते हो
पुरुषार्थ तुम्हें प्रिय है सुत
ना धैर्य मही सा रखते हो
मानो न मानो मनु पुत्र
तुम होंगे मुझमें ही भग्न
और धरा पुत्र कहलाओगे
ये इस धरिणी के
मूक वचन...
प्रीति राघव चौहान
बुधवार, 4 अक्तूबर 2017
Puruskar nahi Samman dain
पूतला काहे करे अभिमान
बावरे काहे करे अभिमान
चन्द रोज़ में ढह जाना है
ऊँचा तेरा मकान
बावरे काहे करे अभिमान
घिसट रही है घर में काया
लुटा रहा तू बाहर माया
जा घर मात पिता की आहें
वो घर जिन्दा शमशान
बावरे काहे करे अभिमान
उनकी झुर्रियाँ दी ना दिखाई
दर दर खोजे जाकर साईं
खाली थाली लेकर बैठे
करे रोज अपमान
बावरे काहे करे अभिमान
खून दिया धरमार्थ कमाया
जग में ऊँचा नाम कमाया
नाम तेरा उनके होंठों पर
तू बनता अनजान
बावरे काहे करे अभिमान
मातपिता को तुम ना रुलाओ
पैर छुओ माथा सहलाओ
पुरस्कार ना कोई चाहिये
दे दो बस सम्मान
बावरे काहे करे अभिमान
प्रीति राघव चौहान