गुरुवार, 29 मार्च 2018

अना की खातिर ना कीचड़ उछालिये


जुदा हर जिन्दगी का फलसफा है
जुदा हर जिन्दगी का फलसफा है दोस्त
गैर की किस्मत का न सिक्का उछालिये
इसी मकतल में उसने सदियाँ गुजार दीं
खुदा का डर दिखाकर न मुश्किल में डालिए
अदब में सर झुकाना फितरत में है उनकी
नाहक गले लगाकर न हैरत में डालिए
दो मुट्ठी दाने काफ़ी हैं तबाक में
मिनकारें हैं सूखी थोड़ा आब चाहिए
मोहतरम अजदाद भी खाली चले गये
 पैसों की खातिर न रिश्ते बिगाड़िये
 मशरिक या मगरिब मतालबा कुछ हो
अना की खातिर ना कीचड़ उछालिये
फलसफा _ज्ञान
मकतल _वधस्थल
तबाक_थाली
मिनकारें_चोंचे
मशरिक_पूर्व
मगरिब_पश्चिम
मतालबा_मांग
अना_अहं
अजदाद_पूर्वज