क्या आपने सुना हुज़ूर
मैना ने सर मुंडवाया है
वो एक सैनिक की बेवा है
संग सैनिक का साया है
पीछे उसके अतिथिगण
की भरी पुरी एक सेना है
जल्दी चल कर मिलें महोदय
आँसू ही उसके बैना है
चुप्पी है उसके आसपास
आक्रोशित इक सन्नाटा है
इक तेज समन्दर अश्कों का
इस ओर बढ़ा सा आता है
मान्यवर आप समझ लें
अब कार्यकाल भी थोड़ा है
वरद हस्त रख दें सर पर
अतिथि चेतक सा घोड़ा हैं
बारह वर्ष इन्हें हमने
बैसाखी सा आजमाया है
गुरुओं की धरती पर
फिर कलंक का साया है
वंदेय गुरुजन हैं
भिक्षा बदले देते शिक्षा
अब फर्ज़ हमारा बनता हैं
हम चलकर दें इनको दीक्षा
गलत यदि हैं अतिथि ये
समूल नाश इनका कर दें
बहुत हलाल किये मस्तक
भाल अलग इनका कर दें
पर याद रहे. . मान्यवर
हर विद्यालय मरघट होगा
एक एक अतिथि के पीछे
मुण्डित सर का जमघट होगा
प्रीति राघव चौहान
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