चलो आज एक नए सफर
पर कहते नई कहानी एक
ना दादी ना नानी जिसमें
ना कोई रात की रानी देख
ढलता सूरज चढ़ती रातें
हर दिन ढले जवानी देख
चलो आज एक नए सफर पर
कहते नई कहानी देख
एक बाग में रख वाले ने
पेड़ लगाए एक सौ एक
बरगद चंपा और चमेली
जामुन लीची ढेरों ढेर
गलती माली यह कर बैठा
कोने में पीपल बो आया
शुद्ध वायु की चाह में
गड़बड़ झाला कर आया
बड़े हुए जब पेड़ वहां के
रौनक बाग में लौट आई
नानी दादी काकी मौसी
सारी फिर से लौट आईं
बच्चे उछल कूद कर बंधू
हल्ला खूब मचाते थे
बड़े बूढ़े भी वहां टहलने
शाम और सुबह आते थे
एक रोज़ एक पंडित जी ने
शनि रवि को बतलाया
पीपल देव बचा लेंगे
बचने का टोटका बतलाया
रोज रवि पीपल तक जाता
दीया एक जला देता
अगरबत्ती और धूप जलाकर
माला रोज चढ़ा देता
देखा देखी बढ़े भक्त
पीपल की महिमा बढ़ निकली
सुबह शाम डोरी रोली से
पीपल की लाली जल निकली
एक भक्त ने बना चबूतरा
पीपल की साख बढ़ा दी थी
कुछ ने अपने घर की देवी
वहाँ चुपचाप लिटा दी थीं
धीरे धीरे बाग का कोना
कचरे की ढेरी बन आया
पन्नी चुन्नी चूड़़ी नारियल
ढेर कूड़े का बढ़ आया
हमने कहा कूड़ेवाले से
जरा बुहार कोने को दो
कान पकड़ कर बोला बहना
वहाँ देव हैं सोने दो
तरह तरह की वहाँ बलायें
मैं न उनको सर लूँगा
पन्नी में मंदिर का कचरा
पाप न उनका सर लूँगा
मिट्टी की खंडित मूरत को
घर के गमले में नहलाओ
एक एक डोरी करके
पीपल को न कुम्हलाओ
शनिदेव होंगे प्रसन्न
अगर गरीब संग चल दोगे
उसकी खाली झोली में
कुछ पैसे कुछ फल दोगे
चलो बंधुओं आज चलें हम
पीपल का शनि हटाना है
पॉलीथीन न लाओ भैया
सबको ये समझाना है
प्रीति राघव चौहान
पर कहते नई कहानी एक
ना दादी ना नानी जिसमें
ना कोई रात की रानी देख
ढलता सूरज चढ़ती रातें
हर दिन ढले जवानी देख
चलो आज एक नए सफर पर
कहते नई कहानी देख
एक बाग में रख वाले ने
पेड़ लगाए एक सौ एक
बरगद चंपा और चमेली
जामुन लीची ढेरों ढेर
गलती माली यह कर बैठा
कोने में पीपल बो आया
शुद्ध वायु की चाह में
गड़बड़ झाला कर आया
बड़े हुए जब पेड़ वहां के
रौनक बाग में लौट आई
नानी दादी काकी मौसी
सारी फिर से लौट आईं
बच्चे उछल कूद कर बंधू
हल्ला खूब मचाते थे
बड़े बूढ़े भी वहां टहलने
शाम और सुबह आते थे
एक रोज़ एक पंडित जी ने
शनि रवि को बतलाया
पीपल देव बचा लेंगे
बचने का टोटका बतलाया
रोज रवि पीपल तक जाता
दीया एक जला देता
अगरबत्ती और धूप जलाकर
माला रोज चढ़ा देता
देखा देखी बढ़े भक्त
पीपल की महिमा बढ़ निकली
सुबह शाम डोरी रोली से
पीपल की लाली जल निकली
एक भक्त ने बना चबूतरा
पीपल की साख बढ़ा दी थी
कुछ ने अपने घर की देवी
वहाँ चुपचाप लिटा दी थीं
धीरे धीरे बाग का कोना
कचरे की ढेरी बन आया
पन्नी चुन्नी चूड़़ी नारियल
ढेर कूड़े का बढ़ आया
हमने कहा कूड़ेवाले से
जरा बुहार कोने को दो
कान पकड़ कर बोला बहना
वहाँ देव हैं सोने दो
तरह तरह की वहाँ बलायें
मैं न उनको सर लूँगा
पन्नी में मंदिर का कचरा
पाप न उनका सर लूँगा
मिट्टी की खंडित मूरत को
घर के गमले में नहलाओ
एक एक डोरी करके
पीपल को न कुम्हलाओ
शनिदेव होंगे प्रसन्न
अगर गरीब संग चल दोगे
उसकी खाली झोली में
कुछ पैसे कुछ फल दोगे
चलो बंधुओं आज चलें हम
पीपल का शनि हटाना है
पॉलीथीन न लाओ भैया
सबको ये समझाना है
प्रीति राघव चौहान
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