शुक्रवार, 29 दिसंबर 2017

पीपल देव के शनि

चलो आज एक नए सफर
 पर कहते नई  कहानी एक 
ना दादी ना नानी जिसमें
 ना कोई रात की रानी देख


 ढलता सूरज चढ़ती रातें 
हर दिन ढले जवानी देख
 चलो आज एक नए सफर पर 
कहते नई कहानी देख

एक बाग में रख वाले ने 
पेड़ लगाए एक सौ एक
 बरगद चंपा और चमेली  
जामुन लीची ढेरों ढेर

 गलती माली यह कर बैठा 
कोने में पीपल बो आया
शुद्ध वायु की चाह में 
गड़बड़ झाला कर आया

बड़े हुए जब पेड़ वहां के 
रौनक बाग में लौट आई 
नानी दादी काकी मौसी
सारी फिर से लौट आईं

बच्चे उछल कूद कर बंधू
हल्ला  खूब मचाते थे
 बड़े बूढ़े भी वहां टहलने 
शाम और सुबह आते थे

एक रोज़ एक पंडित जी ने
शनि रवि को बतलाया
 पीपल देव बचा लेंगे 
बचने का टोटका बतलाया 

रोज रवि पीपल तक जाता 
दीया एक जला देता
अगरबत्ती और धूप जलाकर 
माला रोज चढ़ा देता

देखा देखी बढ़े भक्त
पीपल की महिमा बढ़ निकली
सुबह शाम डोरी रोली से 
पीपल की लाली जल निकली

एक भक्त ने बना चबूतरा
पीपल की साख बढ़ा दी थी
कुछ ने अपने घर की देवी
वहाँ चुपचाप लिटा दी थीं

धीरे धीरे  बाग का कोना
कचरे की ढेरी बन आया
पन्नी चुन्नी चूड़़ी नारियल
ढेर कूड़े का बढ़ आया 

हमने कहा कूड़ेवाले से 
जरा बुहार कोने को दो
कान पकड़ कर बोला बहना
वहाँ देव हैं सोने दो

तरह तरह की वहाँ बलायें 
मैं न उनको सर लूँगा
पन्नी में मंदिर का कचरा
पाप न उनका सर लूँगा

मिट्टी की खंडित मूरत को
घर के गमले में नहलाओ
एक एक डोरी करके 
पीपल को न कुम्हलाओ

शनिदेव होंगे प्रसन्न
अगर गरीब संग चल दोगे
उसकी खाली झोली में
कुछ पैसे कुछ फल दोगे

चलो बंधुओं आज चलें हम 
पीपल का शनि हटाना है 
पॉलीथीन न लाओ भैया 
सबको ये समझाना है 
      प्रीति राघव चौहान 







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