बुधवार, 27 सितंबर 2017

Guest yoni se nikalne ke upay

1November2017की रात  को एक थोड़े गुलाबी, हल्के हल्दिया, तनिक सुरमई कपड़े को लें।कपड़़ा सूती हो ।इसमें पाँच से ग्यारह बिन्दी के आकार के छेद करें ।कपड़े को पानी में सवा घंटा भिगोये,अब इसमें सवा पाव गेंहूँ लें, याद रखें गेंहूँ दिन में बारह घंटे भीगे हों ।गेंहूँ में पाँच दाने बाजरा, दो काली उड़द, व चवन्नी डाल कर अपनी खाट के सिरहाने लटकायें ।रात में सवा तीन बार उठ कर खाट की परिक्रमा करें और अंजुलि भर जल इन पर डालें ।ओम  का जाप करते हुये आँख बन्द रखें ।1तारीख की दोपहर बारह बजे तक सभी गैस्ट बन्धुओं को इसका सुफल प्राप्त होगा ।ये कोई टोटका नहीं आजमाया हुआ सफल नुस्खा है ।

यदि चौबीस घंटे में कार्य न बने तो घबरायें नहीं।अगले सतासी रोज़ इसी  क्रिया को दोहरायें ।बस दिन के भीगे गेंहूँ रात कैसेरोल में रख कर सोयें।रोज दो मुट्ठी स्वयं खायें बाकी घर वालों में बाँट दें ।याद रहे उड़द, बाजरा और चवन्नी संभाल कर रखनी है ।चवन्नी की जगह एक रुपया भी ले सकते हैं ।
       इस उपाय के साथ आपको पूरी मेहनत और लगन से पढ़ाना भी है ।जो बंधु ऐसा नहीं करेंगें उनका  उपाय पूरा होन
 में सन्देह है ।
       प्रीति राघव चौहान 

मंगलवार, 26 सितंबर 2017

दूर क्यों जाना...

हम सब हैं जहाँ 
क्यों है उस जगह से शिकायतें, क्यों छूना चाहते हैं क्षितिज? 
क्या सोचा है उस अनदेखे क्षितिज का रंग रूप कैसा है? बस 
जहाँ हैं वहाँ से दुखी ।जो पास है उससे परेशान, इस कदर कि चल देते हैं अनदेखी मछली का निवाला बनने! 
         क्यों नहीं रंग भरते अपने चारों ओर की खाली दीवारों में?  क्यों नहीं बनाते इन पर इन्द्रधनुष? बाहर का इन्द्रजाल हमें लुभावना लगता है और अपना नीड़ भदरंग.. कभी सोचा है, ऐसा क्यों???? 
         खुद से शिकायतें, खुदा से गिला 
         ख़ुदी से निकल, खुद से मिल
क्या जानते हैं हमारी सारी शिकायतों के मूल में " मैं" है! 
जब तक हमारा मैं हम में  है तब तक हम उसको लेकर दर दर भटकेंगे और हासिल खालीपन...  जिस रोज़ मैं के माट को रिता लेंगे जहान भर के रंग और खुशियाँ हमारे भीतर बेताल नृत्य करेंगी ।रंग आपके, मस्ती आपकी, नृत्य आपका.. फिर दूर क्यों जाना..  अपने भीतर के किसी बेढब कोने से शुरुआत करें.. आज अभी ।
प्रीति चौहान 
26सितम्बर2017

रविवार, 24 सितंबर 2017

Vulture

          गिद्ध
 मंदिर  मंदिर बैठे पंडे
मंदिर बाहर   बैठे वृद्ध
राम ढूंढते बन बन भटके
घर के ऊपर फिरते गिद्ध

खुशहाली को खुशी खा गई
 सड़कों पर है बदहाली
दिल्ली से है दूर बहुत
जनता की दीवाली

बड़ा समुन्दर गोपी चन्दर
खेल निगल रही  व्हेल
भूखे नंगे करें कब्बडी
ओलंपिक में फेल

हर धाम पर कोटि देव
हर देव के आगे थाली
जाने कहाँ गईं मढैया
घर के बाहर वाली

हर मंदिर को स्कूल बना दो
पंडों को दो फिर शिक्षा
हाथ तुम्हारे जगन्नाथ हैं
बहुत हो गई भिक्षा

लाख ऊँचे हों गुंबद मीनारें
इक इक कर ढह जाएंगी
कोटि कोटि शिक्षित जनता
भारत का भाग्य बनायेगी
            प्रीति राघव चौहान 






शनिवार, 23 सितंबर 2017

#address

हर्फ़ दर हर्फ़ वो अपनी
 कहानी कह गया
और हम मसरूफ़ खुद
अपना पता खोजे गये

ज़िन्दगी के पेंचोखम
समझ से ज़ुदा रहे
हम फासले पर खड़े
होकर खुदा ढूढे गये

उसको मयस्सर नहीं
रोटियाँ दो जून की
हम पेटीएम की राह
उसका पता ढूढे गये

गर्दओ गुबार रास्तों की
 चस्पाँ रही कपड़ों पर
बदहवास खुद में
नूर ए खुदा ढूढे गये
प्रीति राघव चौहान




हर्फ़

हर्फ़ 

मैं रोज पढ़ती हूँ
पहले से आखिरी 
सफे तक
इक वही नाम
दिन रैन
सुबह शाम
और कहते हैं
लोग 
सफेद कागज पर
 हर्फ़ सफेद बांचना
बस तुम्ही को
आता है 
प्रीति राघव चौहान 

जिद्दी परिंदे

 

#badal


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