यात्रा सिर्फ वो नहीं जो सुदूर देशों का दर्शन कराये । यात्रा वो है जिसमें आप स्वयं से मिलें, अपने मैं की जड़ तक पहुँचें उसे मर्दित कर आगे बढ़ें और दुनिया को एक नई दिशा दे पायें। तो चलें अनन्तयात्रा पर..
रविवार, 31 दिसंबर 2017
शनिवार, 30 दिसंबर 2017
जन्म दिवस पर खाना
ख़्याली पुलावों की प्लेटें सजाये
दिवस तीसवाँ आखिर का महीना
बातों के हम कितने लच्छे बनाये
है फांकानशी कुछ तो खाना पड़ेगा
रखीं हैं कसमें कहो तो सजायें
काटी हैं पीसी है बाँटी भी दिनभर
सजाकर रखी है कहो तो दिखायें
मन तो बहुत था बहुत कुछ बनाते
अपने हो आखिर क्या बकरा बनायें
हवा ही हवा है यहाँ से वहाँ तक
तुम भी वो खाओ हम भी वो खायें
शुक्रवार, 29 दिसंबर 2017
पीपल देव के शनि
पर कहते नई कहानी एक
ना दादी ना नानी जिसमें
ना कोई रात की रानी देख
ढलता सूरज चढ़ती रातें
हर दिन ढले जवानी देख
चलो आज एक नए सफर पर
कहते नई कहानी देख
एक बाग में रख वाले ने
पेड़ लगाए एक सौ एक
बरगद चंपा और चमेली
जामुन लीची ढेरों ढेर
गलती माली यह कर बैठा
कोने में पीपल बो आया
शुद्ध वायु की चाह में
गड़बड़ झाला कर आया
बड़े हुए जब पेड़ वहां के
रौनक बाग में लौट आई
नानी दादी काकी मौसी
सारी फिर से लौट आईं
बच्चे उछल कूद कर बंधू
हल्ला खूब मचाते थे
बड़े बूढ़े भी वहां टहलने
शाम और सुबह आते थे
एक रोज़ एक पंडित जी ने
शनि रवि को बतलाया
पीपल देव बचा लेंगे
बचने का टोटका बतलाया
रोज रवि पीपल तक जाता
दीया एक जला देता
अगरबत्ती और धूप जलाकर
माला रोज चढ़ा देता
देखा देखी बढ़े भक्त
पीपल की महिमा बढ़ निकली
सुबह शाम डोरी रोली से
पीपल की लाली जल निकली
एक भक्त ने बना चबूतरा
पीपल की साख बढ़ा दी थी
कुछ ने अपने घर की देवी
वहाँ चुपचाप लिटा दी थीं
धीरे धीरे बाग का कोना
कचरे की ढेरी बन आया
पन्नी चुन्नी चूड़़ी नारियल
ढेर कूड़े का बढ़ आया
हमने कहा कूड़ेवाले से
जरा बुहार कोने को दो
कान पकड़ कर बोला बहना
वहाँ देव हैं सोने दो
तरह तरह की वहाँ बलायें
मैं न उनको सर लूँगा
पन्नी में मंदिर का कचरा
पाप न उनका सर लूँगा
मिट्टी की खंडित मूरत को
घर के गमले में नहलाओ
एक एक डोरी करके
पीपल को न कुम्हलाओ
शनिदेव होंगे प्रसन्न
अगर गरीब संग चल दोगे
उसकी खाली झोली में
कुछ पैसे कुछ फल दोगे
चलो बंधुओं आज चलें हम
पीपल का शनि हटाना है
पॉलीथीन न लाओ भैया
सबको ये समझाना है
प्रीति राघव चौहान
गुरुवार, 28 दिसंबर 2017
चलो आज तितलियों का जिक्र करें
कैप्शन जोड़ें |
चलो आज तितलियों का ज़िक्र करें
ज़िन्दगी वो भी हुआ करती थी
सपने में टॉफी
कहानियों में जलेबी के पेड़
दिन भर उछलकूद
गुड़िया गुड्डों की बारातें
खाकर पीकर मौज मनाकर
लड़कर गुड़िया वापस लाते
खाट के नीचे बस्ते संग छिपना
निकल आना पापा के जाते
दिनभर गुल्ली डंडा कंचे
धूल भरे घर को आ जाना
हाथ पैर मुँह रगड़ के धोना
पापा के आगे खोल किताबें
सर को हिला हिला कर पढ़ना
मम्मी पापा के जाते ही
उछल उछल करखाट तोड़ना
आस पड़ोस में मम्मी पापा
टीचर जी को जम के कोसना
खुश होकर देना उनका टॉफी
चाय कटोरी भरकर देना
कितने बुद्धू हुआ करते थे
चीनी भी चोरी करते थे
माँ रिक्शे के पैसे बचाती
उठा ऐश हम किया करते थे
रिश्तेदारों केआते ही
बांछे ऐसे खिल जाती थी
केले और पेठे को देख
मन की कलियाँ खिल जाती थी
आज न जाओ अभी न जाओ
करते थे मनुहार यही
देवदूत साक्षात पधारे
रुकते क्यों न दिन चार यहीं
मन में लड्डू फूटा करते
रुकते ही मौसी मामा जी
मनमानी की मिली इजाजत
दिन रात हंगामा जी
वो दो रुपये विदाई वाले
दो लाख पर भारी थे
टॉफी, सायकिल, कॉमिक्स, आईसक्रीम
चार दिनों तक जारी थे
रेत के महल बनाना
बिठा कर रखना उनमें कान्हा जी
बर्थे डे चाहे जिसका हो
जमकर करना हंगामा जी
रामलीला में खाट बिछा कर
जगह रोकना सबसे आगे
एक दुशाले में ही छिपकर
सोते रहना जागे जागे
बस्ते में ढक्कन गुड़िया
पंख किताबों में रखते थे
तितली के पीछे दौड़ लगाकर
हम कितने सपने बुनते थे
प्रीति राघव चौहान
बुधवार, 27 दिसंबर 2017
रविवार, 24 दिसंबर 2017
टॉफ़ी नहीं कॉपी दो
टॉफ़ी देकर खुश करते हो
मुझको कॉपी लाकर दो
बहुत हुये अब उतरे कपड़े
मुझको वर्दी लाकर दो
हाथ गाड़ियाँ बहुत चलाई
बालू महल बनाये खूब
ढक्कन डिबिया जोड़ लिये हैं
स्लेट और बत्ती लाकर दो
नहीं जानते कैसे दाखिल
करना है विद्यालय में
माई बाबू ईंट ढो रहे
मुझको बस्ता लाकर दो
मैं खुद जाकर टीचर जी से
कह दूंगी दाखिल कर लो
मेरे सारे ढक्कन लेकर
मुझको भी साक्षर कर दो
प्रीति राघव चौहान
रविवार, 26 नवंबर 2017
शुक्रवार, 24 नवंबर 2017
सोमवार, 13 नवंबर 2017
सुरखाब
शहर के आला अफसरान
के पास थी
एक लिस्ट शहर के
हरफनमौलाओं की
धुरंधर विद्वानों की
ध्रुव से तारों की
बांटे गए
आनन-फानन में पुरस्कार
काले तीतर नवाजे गए
सम्माननीय पदकों से
चील /कौवे /बया /गिद्ध /तोते
सारस और मोर
सभी अपने कार्य को
बखूबी निभाते हुए
ढूंढ रहे थे वह सींग
जो तीतरों के सिर पर
देखें अफसरान ने
सुरखाब के परों का तो
जिक्र भी नदारद था!!!!!
प्रीति राघव चौहान
रविवार, 5 नवंबर 2017
शुक्रवार, 27 अक्तूबर 2017
मौन
मौन
बुधवार, 25 अक्तूबर 2017
Kabhi Jindagi se Milo
कभी ज़िन्दगी से मिलो जो तुम
उसे इत्तला करना ज़रूर
कभी मैं खफा कभी वो खफा
कितनी दफा मरना हुज़ूर
जो सुबह मिली तो थी धानी सी
सरे शाम से थी सयानी सी
परिजात सी मैं बिखर गई
गिला आज भी है उसे जरूर
दीन ओ धरम भी निभाये हैं
और गीत ए फाग भी गाये हैं
कभी कहकशां सी थी चार सूँ
अब कहकशे काहे है गुरूर
ऐ ज़िन्दगी तेरा पता
तेरा पता है जो लापता
मेरा भी नमन हर बार है
मिली थी कभी बाकी है नूर
प्रीति राघव चौहान
शुक्रवार, 13 अक्तूबर 2017
deen dharam
न मन्दिर न मदीना
मेरा मरकज़ मुझी से है
मुझे तेरे दीन औ धरम
तेरी मंजिल से क्या लेना
Priti Raghav Chauhan
मंगलवार, 10 अक्तूबर 2017
गुरुवार, 5 अक्तूबर 2017
लक्ष्य को पाना है
माँ, गिरुँ अगर मैं बार बार
तुझको हर बार उठाना है
तुम रहना बन मशाल साथ
मुझे अपने लक्ष्य को पाना है
भूल भुलैया मेले ठेले
माना मुझको भरमायेगें
तेरी मशाल के जिन्दा जुगनू
हर पल राह दिखायेंगे
सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर
मैं आगे बढ़ता जाऊँगा
मानवता का परचम
पूरे जग में फहराऊँगा
लक्ष्य दिया तूने सेवा
दक्ष मुझे होना होगा
तप्त धरा से पीड़ा को
समूल नष्ट करना होगा
माँ हाथ मेरे माना छोटे
हर पीड़ित का बोझ उठाना है
सर्वश्रेष्ठ चिकित्सक बनकर
मुझे अपने लक्ष्य को पाना है
प्रीति राघव चौहान
धरापुत्र
हे मनु पुत्र,
तुम सृष्टि रचियता
बनो इसमें संदेह नहीं
धरा पुत्र कहलाओगे
ये इस धरिणी के
मूक वचन..
मंगल विजय करो
या बुलैट गति से घूमों तुम
बम बनाओ दुनिया भर के
या सागर माथा चूमों तुम
सकल सृष्टि से बेकल हो
ढूढोगे इस भू का स्पंदन
धरा पुत्र कहलाओगे
ये इस धरिणी के
मूक वचन...
गति में लय है माना
हैं रोमांचकारी ऊँचाई
विस्मयकारी लहरों की ताल
ना तुम्हें तनिक लुभा पाई
नंगे पैरों ओस पे चलके
करोगे वसुधा का वंदन
धरा पुत्र कहलाओगे
ये इस धरिणी के
मूक वचन...
माना तुम मुझसे
न किसी कोण
से मिलते हो
पुरुषार्थ तुम्हें प्रिय है सुत
ना धैर्य मही सा रखते हो
मानो न मानो मनु पुत्र
तुम होंगे मुझमें ही भग्न
और धरा पुत्र कहलाओगे
ये इस धरिणी के
मूक वचन...
प्रीति राघव चौहान
बुधवार, 4 अक्तूबर 2017
Puruskar nahi Samman dain
पूतला काहे करे अभिमान
बावरे काहे करे अभिमान
चन्द रोज़ में ढह जाना है
ऊँचा तेरा मकान
बावरे काहे करे अभिमान
घिसट रही है घर में काया
लुटा रहा तू बाहर माया
जा घर मात पिता की आहें
वो घर जिन्दा शमशान
बावरे काहे करे अभिमान
उनकी झुर्रियाँ दी ना दिखाई
दर दर खोजे जाकर साईं
खाली थाली लेकर बैठे
करे रोज अपमान
बावरे काहे करे अभिमान
खून दिया धरमार्थ कमाया
जग में ऊँचा नाम कमाया
नाम तेरा उनके होंठों पर
तू बनता अनजान
बावरे काहे करे अभिमान
मातपिता को तुम ना रुलाओ
पैर छुओ माथा सहलाओ
पुरस्कार ना कोई चाहिये
दे दो बस सम्मान
बावरे काहे करे अभिमान
प्रीति राघव चौहान
बुधवार, 27 सितंबर 2017
Guest yoni se nikalne ke upay
1November2017की रात को एक थोड़े गुलाबी, हल्के हल्दिया, तनिक सुरमई कपड़े को लें।कपड़़ा सूती हो ।इसमें पाँच से ग्यारह बिन्दी के आकार के छेद करें ।कपड़े को पानी में सवा घंटा भिगोये,अब इसमें सवा पाव गेंहूँ लें, याद रखें गेंहूँ दिन में बारह घंटे भीगे हों ।गेंहूँ में पाँच दाने बाजरा, दो काली उड़द, व चवन्नी डाल कर अपनी खाट के सिरहाने लटकायें ।रात में सवा तीन बार उठ कर खाट की परिक्रमा करें और अंजुलि भर जल इन पर डालें ।ओम का जाप करते हुये आँख बन्द रखें ।1तारीख की दोपहर बारह बजे तक सभी गैस्ट बन्धुओं को इसका सुफल प्राप्त होगा ।ये कोई टोटका नहीं आजमाया हुआ सफल नुस्खा है ।
मंगलवार, 26 सितंबर 2017
दूर क्यों जाना...
क्यों है उस जगह से शिकायतें, क्यों छूना चाहते हैं क्षितिज?
क्या सोचा है उस अनदेखे क्षितिज का रंग रूप कैसा है? बस
जहाँ हैं वहाँ से दुखी ।जो पास है उससे परेशान, इस कदर कि चल देते हैं अनदेखी मछली का निवाला बनने!
क्यों नहीं रंग भरते अपने चारों ओर की खाली दीवारों में? क्यों नहीं बनाते इन पर इन्द्रधनुष? बाहर का इन्द्रजाल हमें लुभावना लगता है और अपना नीड़ भदरंग.. कभी सोचा है, ऐसा क्यों????
खुद से शिकायतें, खुदा से गिला
ख़ुदी से निकल, खुद से मिल
क्या जानते हैं हमारी सारी शिकायतों के मूल में " मैं" है!
जब तक हमारा मैं हम में है तब तक हम उसको लेकर दर दर भटकेंगे और हासिल खालीपन... जिस रोज़ मैं के माट को रिता लेंगे जहान भर के रंग और खुशियाँ हमारे भीतर बेताल नृत्य करेंगी ।रंग आपके, मस्ती आपकी, नृत्य आपका.. फिर दूर क्यों जाना.. अपने भीतर के किसी बेढब कोने से शुरुआत करें.. आज अभी ।
प्रीति चौहान
26सितम्बर2017
रविवार, 24 सितंबर 2017
Vulture
मंदिर मंदिर बैठे पंडे
मंदिर बाहर बैठे वृद्ध
राम ढूंढते बन बन भटके
घर के ऊपर फिरते गिद्ध
खुशहाली को खुशी खा गई
सड़कों पर है बदहाली
दिल्ली से है दूर बहुत
जनता की दीवाली
शनिवार, 23 सितंबर 2017
#address
कहानी कह गया
और हम मसरूफ़ खुद
अपना पता खोजे गये
ज़िन्दगी के पेंचोखम
समझ से ज़ुदा रहे
हम फासले पर खड़े
होकर खुदा ढूढे गये
उसको मयस्सर नहीं
रोटियाँ दो जून की
हम पेटीएम की राह
उसका पता ढूढे गये
गर्दओ गुबार रास्तों की
चस्पाँ रही कपड़ों पर
बदहवास खुद में
नूर ए खुदा ढूढे गये
प्रीति राघव चौहान