शनिवार, 30 दिसंबर 2017

जन्म दिवस पर खाना

जन्मदिन है उनका कहो क्या पकायें
ख़्याली पुलावों की प्लेटें सजाये

दिवस तीसवाँ  आखिर का महीना
बातों के हम कितने लच्छे बनाये

लगा ली हैं सीढ़ी सुधाकर तक देखो
रश्मियाँ  पीयूष की कहो तो पिलायें

है फांकानशी कुछ तो खाना पड़ेगा
रखीं हैं कसमें कहो तो सजायें

काटी हैं पीसी है बाँटी भी दिनभर
सजाकर रखी है कहो तो दिखायें

मन तो बहुत था बहुत कुछ बनाते
अपने हो आखिर क्या बकरा बनायें

हवा ही हवा है यहाँ से वहाँ तक
तुम भी वो खाओ हम भी वो खायें





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