बात जब मैं की चली है तो चलो मैं भी कह दूँ
तुम अपनी मैं में रहो मैं खुदी में खुृश हूँ
तुमसे बेहतर न सही कमतर भी नहीं
तुम अपने फन में मैं बेख़ुदी में खुश हूँ
ये सीढ़ियाँ हैं कहीं न खत्म होती हैं
मैं हर कदम पर खुश था खुश हूँ
पहल कोई भी करे नेकनीयती से करे,
वाहवाही हो या फतवे सभी से खुश हूँ
मैं जो हूँ जैसा हूँ रहूँगा सदा वही
रोया हूँ बहुत जब से तभी से खुश हूँ
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