लाल दीवारें /भीगी नहीं हैरान थी
दीवारों से निकल
देखने आईं कुछ आँखें
हो विकल बारम्बार
कदम रह गये ठिठक कर उस द्वार
जिसके पीछे बहुत सी
पलकें थीं प्रतीक्षारत
क्या दुनिया यूँ भी ख़त्म होती है..
अनंत यात्रा में ये तो बस पड़ाव था
यात्रा जारी है
वो बीज जो रोप दिये
लाल दीवारों के भीतर
छा जायेंगे चहुँ ओर
बन सुवासित इंद्रधनुष
दीवारें स्वमेव हो जायेंगी सतरंगी
़
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