बात जब जश्न ए आजादी की चली है तो चलो हम भी कह दें..
तिरंगा शान है मेरी जान है मेरी
इसके रहते मुझे अब क्या कमी है
मुझे प्यारा है हिंदुस्तान जान से
इससे बढ़कर दूजा कोई नहीं है
इन्हीं पंक्तियों के साथ मैं अपने आदरणीय गुरुजन, सम्माननीय मुख्य अतिथि महोदय व अपनी बहनों व भाइयों का अभिवादन करती हूँ। आज हम आजादी का बहत्तरवां जन्मदिन मना रहे हैं। भारत तो यूँ भी विविधताओं से भरा देश है। यहां विभिन्न संस्कृतियां पाई जाती है। अतः विभिन्न उत्सव मनाना लाजिमी है। लेकिन खुशियों के गुब्बारे हवा में उड़ाने से पहले, रंग और अबीर उड़ाने से पहले हमें याद रखना होगा उन बलिदान देने वाले वीरों को, वीरांगनाओं को जिन्होंने वतन ए आजादी के लिये अपनी जान की बाजी लगा दी ।
याद रहें वो वीर सपूत भी जो तिरंगे की आन बान शान के लिये सर्द हिमालय की चोटियों पर, तपते रेगिस्तान में और तटीय क्षेत्रों में दिन रात खड़े हैं।
मेरे जेहन में एक सवाल लगातार उठता है आजादी तो हमें मिल गई परन्तु हम इस स्वतंत्रता का क्या सिला दे रहे हैं? कहीं हम दिशाहीन तो नहीं हो रहे? हमारा लक्ष्य क्या है? हम देश को क्या दे रहे हैं???
हम एक सौ बत्तीस करोड़ देशवासी यदि ईमानदारी और नेक नीयत से अपने कर्म करें तो अमेरिका जैसे देशों को पीछे छोड़ सकते हैं।
जो जहां है वहां अपने काम में ईमानदारी बरते। विद्यार्थी अपनी पढ़ाई में, सैनिक सेना में, शिक्षक, डॉक्टर सेवा में और व्यापारी व्यापार में.. प्रतिदिन हम अपने छोटे-छोटे कार्यों को सच्चाई से करेंगे तो मेरा प्यारा भारतवर्ष दुनिया भर में अपना परचम ऊंचा रख पायेगा।
याद रहे बंधुओं मैंने अपना घर ईमानदारी से साफ किया और कूड़ा पड़ोसी के घर के आगे कर दिया तो भी हम देश को कूड़ेदान बना देंगे।
बाहर के मुल्कों में भारत भिखारियों के देश के नाम से जाना जाता है। हम कब तक जहालत में पड़े रहेंगे? आखिर कब तक??? एक सौ बत्तीस करोड़ लोग चाहें तो क्या नहीं कर सकते?
मान देश का रखना बंधु
जान की क्या परवाह करे
वही है सच्चा हिंदुस्तानी
जो सच को सौ बार मरे
आइये हम सभी मिलकर ये संकल्प लें हम अपने सभी कर्तव्यों को पूरी ईमानदारी कर्तव्यनिष्ठा से निभाएंगे.. जय हिन्द ! जय भारत !
प्रीति राघव चौहान
यात्रा सिर्फ वो नहीं जो सुदूर देशों का दर्शन कराये । यात्रा वो है जिसमें आप स्वयं से मिलें, अपने मैं की जड़ तक पहुँचें उसे मर्दित कर आगे बढ़ें और दुनिया को एक नई दिशा दे पायें। तो चलें अनन्तयात्रा पर..
सोमवार, 6 अगस्त 2018
15August
मंगलवार, 13 फ़रवरी 2018
Guest Maina
क्या आपने सुना हुज़ूर
मैना ने सर मुंडवाया है
वो एक सैनिक की बेवा है
संग सैनिक का साया है
पीछे उसके अतिथिगण
की भरी पुरी एक सेना है
जल्दी चल कर मिलें महोदय
आँसू ही उसके बैना है
चुप्पी है उसके आसपास
आक्रोशित इक सन्नाटा है
इक तेज समन्दर अश्कों का
इस ओर बढ़ा सा आता है
मान्यवर आप समझ लें
अब कार्यकाल भी थोड़ा है
वरद हस्त रख दें सर पर
अतिथि चेतक सा घोड़ा हैं
बारह वर्ष इन्हें हमने
बैसाखी सा आजमाया है
गुरुओं की धरती पर
फिर कलंक का साया है
वंदेय गुरुजन हैं
भिक्षा बदले देते शिक्षा
अब फर्ज़ हमारा बनता हैं
हम चलकर दें इनको दीक्षा
गलत यदि हैं अतिथि ये
समूल नाश इनका कर दें
बहुत हलाल किये मस्तक
भाल अलग इनका कर दें
पर याद रहे. . मान्यवर
हर विद्यालय मरघट होगा
एक एक अतिथि के पीछे
मुण्डित सर का जमघट होगा
प्रीति राघव चौहान
सोमवार, 5 फ़रवरी 2018
लाल दीवारें
लाल दीवारें /भीगी नहीं हैरान थी
दीवारों से निकल
देखने आईं कुछ आँखें
हो विकल बारम्बार
कदम रह गये ठिठक कर उस द्वार
जिसके पीछे बहुत सी
पलकें थीं प्रतीक्षारत
क्या दुनिया यूँ भी ख़त्म होती है..
अनंत यात्रा में ये तो बस पड़ाव था
यात्रा जारी है
वो बीज जो रोप दिये
लाल दीवारों के भीतर
छा जायेंगे चहुँ ओर
बन सुवासित इंद्रधनुष
दीवारें स्वमेव हो जायेंगी सतरंगी
़