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सोमवार, 6 अगस्त 2018

15August

बात जब जश्न ए आजादी की चली है तो चलो हम भी कह दें..
तिरंगा शान है मेरी जान है मेरी
इसके रहते मुझे अब क्या कमी है
मुझे प्यारा है हिंदुस्तान जान से
इससे बढ़कर दूजा कोई नहीं है
       इन्हीं पंक्तियों के साथ मैं अपने आदरणीय गुरुजन, सम्माननीय मुख्य अतिथि महोदय व अपनी बहनों व भाइयों का अभिवादन करती हूँ। आज हम आजादी का बहत्तरवां जन्मदिन मना रहे हैं। भारत तो यूँ भी विविधताओं से भरा देश है। यहां विभिन्न संस्कृतियां पाई जाती है। अतः विभिन्न उत्सव मनाना लाजिमी है। लेकिन खुशियों के गुब्बारे हवा में उड़ाने से पहले, रंग और अबीर उड़ाने से पहले हमें याद रखना होगा उन बलिदान देने वाले वीरों को, वीरांगनाओं को जिन्होंने वतन ए आजादी के लिये अपनी जान की बाजी लगा दी ।
याद रहें वो वीर सपूत भी जो तिरंगे की आन बान शान के लिये सर्द हिमालय की चोटियों पर, तपते रेगिस्तान में और तटीय क्षेत्रों में दिन रात खड़े हैं।
   मेरे जेहन में एक सवाल लगातार उठता है आजादी तो हमें मिल गई परन्तु हम इस स्वतंत्रता का क्या सिला दे रहे हैं? कहीं हम दिशाहीन तो नहीं हो रहे? हमारा लक्ष्य क्या है? हम देश को क्या दे रहे हैं???
    हम एक सौ बत्तीस करोड़ देशवासी यदि ईमानदारी और नेक नीयत से अपने कर्म करें तो अमेरिका जैसे देशों को पीछे छोड़ सकते हैं।
     जो जहां है वहां अपने काम में ईमानदारी बरते। विद्यार्थी अपनी पढ़ाई में, सैनिक सेना में, शिक्षक, डॉक्टर सेवा में और व्यापारी व्यापार में.. प्रतिदिन हम अपने छोटे-छोटे कार्यों को सच्चाई से करेंगे तो मेरा प्यारा भारतवर्ष दुनिया भर में अपना परचम ऊंचा रख पायेगा।
याद रहे बंधुओं मैंने अपना घर ईमानदारी से साफ किया और कूड़ा पड़ोसी के घर के आगे कर दिया तो भी हम देश को कूड़ेदान बना देंगे।
     बाहर के मुल्कों में भारत भिखारियों के देश के नाम से जाना जाता है। हम कब तक जहालत में पड़े रहेंगे? आखिर कब तक??? एक सौ बत्तीस करोड़ लोग चाहें तो क्या नहीं कर सकते?
  मान देश का रखना बंधु
जान की क्या परवाह करे
वही है सच्चा हिंदुस्तानी
जो सच को सौ बार मरे
  आइये हम सभी मिलकर ये संकल्प लें हम अपने सभी कर्तव्यों को पूरी ईमानदारी कर्तव्यनिष्ठा से निभाएंगे.. जय हिन्द ! जय भारत !
         प्रीति राघव चौहान


मंगलवार, 13 फ़रवरी 2018

Guest Maina

क्या आपने सुना हुज़ूर 

मैना ने सर मुंडवाया है 

वो एक सैनिक की बेवा है

संग सैनिक का साया है 

पीछे उसके अतिथिगण

की भरी पुरी एक सेना है

जल्दी चल कर मिलें महोदय

आँसू ही उसके बैना है

चुप्पी है उसके  आसपास

आक्रोशित इक सन्नाटा है

इक तेज समन्दर अश्कों का

इस ओर बढ़ा सा आता है 

मान्यवर आप समझ लें

अब कार्यकाल भी थोड़ा है

वरद हस्त रख दें सर पर

अतिथि चेतक सा घोड़ा हैं

बारह वर्ष इन्हें  हमने 

बैसाखी सा आजमाया है

गुरुओं की धरती पर 

फिर कलंक का साया है

वंदेय गुरुजन हैं 

भिक्षा बदले देते शिक्षा

अब फर्ज़ हमारा बनता हैं

हम चलकर दें इनको दीक्षा 

गलत यदि हैं अतिथि ये 

समूल नाश इनका कर दें 

बहुत हलाल किये मस्तक

भाल अलग इनका कर दें

पर याद रहे. . मान्यवर

हर विद्यालय मरघट होगा

एक एक अतिथि के पीछे

मुण्डित सर का जमघट होगा

प्रीति राघव चौहान 





सोमवार, 5 फ़रवरी 2018

लाल दीवारें

लाल दीवारें /भीगी नहीं हैरान थी 

दीवारों से निकल 

 देखने आईं कुछ आँखें 

हो विकल बारम्बार     

कदम रह गये ठिठक कर उस द्वार 

जिसके पीछे बहुत सी

पलकें थीं प्रतीक्षारत 

क्या  दुनिया यूँ भी ख़त्म होती है.. 

अनंत यात्रा में ये तो बस पड़ाव था  

यात्रा जारी है 

वो बीज जो रोप दिये 

लाल दीवारों के भीतर 

छा जायेंगे चहुँ ओर

बन सुवासित इंद्रधनुष 

दीवारें स्वमेव हो जायेंगी सतरंगी 

़                                            

शनिवार, 3 फ़रवरी 2018

सोमवार, 1 जनवरी 2018

माना के साल अभी नया नया सा है




माना कि साल अभी नया नया सा है
ये और बात कि चहूँओर बस धुँआ सा है

मेरा दर मेरी खिड़की बंद है बेज़ा नहीं
बाहर सर्द समन्दर का गहरा कुँआ सा है

भेज दी है दरख्वास्त आफताब को हमने 
पिघलना अभी कुछ शुरु वो हुआ सा है

बड़े शहर बड़ी सौर जश्न उससे भी बड़े
गाँव का बाशिंदा अब भी अनछुआ सा है

ज़िन्दगी क्या है झगड़ा दीवानी  सा है
तारीख़ पर तारीख़ हैं लगता सुना हुआ सा है 

ये बात और है कि पत्थर हो गया हूँ  मैं
देखकर के सुर्खियाँ खड़ा रुँआ रुँआ सा है
                           प्रीति राघव चौहान