माना कि साल अभी नया नया सा है
ये और बात कि चहूँओर बस धुँआ सा है
मेरा दर मेरी खिड़की बंद है बेज़ा नहीं
बाहर सर्द समन्दर का गहरा कुँआ सा है
भेज दी है दरख्वास्त आफताब को हमने
पिघलना अभी कुछ शुरु वो हुआ सा है
बड़े शहर बड़ी सौर जश्न उससे भी बड़े
गाँव का बाशिंदा अब भी अनछुआ सा है
ज़िन्दगी क्या है झगड़ा दीवानी सा है
तारीख़ पर तारीख़ हैं लगता सुना हुआ सा है
ये बात और है कि पत्थर हो गया हूँ मैं
देखकर के सुर्खियाँ खड़ा रुँआ रुँआ सा है
प्रीति राघव चौहान
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