सोमवार, 1 जनवरी 2018

माना के साल अभी नया नया सा है




माना कि साल अभी नया नया सा है
ये और बात कि चहूँओर बस धुँआ सा है

मेरा दर मेरी खिड़की बंद है बेज़ा नहीं
बाहर सर्द समन्दर का गहरा कुँआ सा है

भेज दी है दरख्वास्त आफताब को हमने 
पिघलना अभी कुछ शुरु वो हुआ सा है

बड़े शहर बड़ी सौर जश्न उससे भी बड़े
गाँव का बाशिंदा अब भी अनछुआ सा है

ज़िन्दगी क्या है झगड़ा दीवानी  सा है
तारीख़ पर तारीख़ हैं लगता सुना हुआ सा है 

ये बात और है कि पत्थर हो गया हूँ  मैं
देखकर के सुर्खियाँ खड़ा रुँआ रुँआ सा है
                           प्रीति राघव चौहान 






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