हर्फ़ दर हर्फ़ वो अपनी
कहानी कह गया
और हम मसरूफ़ खुद
अपना पता खोजे गये
ज़िन्दगी के पेंचोखम
समझ से ज़ुदा रहे
हम फासले पर खड़े
होकर खुदा ढूढे गये
उसको मयस्सर नहीं
रोटियाँ दो जून की
हम पेटीएम की राह
उसका पता ढूढे गये
गर्दओ गुबार रास्तों की
चस्पाँ रही कपड़ों पर
बदहवास खुद में
नूर ए खुदा ढूढे गये
प्रीति राघव चौहान
कहानी कह गया
और हम मसरूफ़ खुद
अपना पता खोजे गये
ज़िन्दगी के पेंचोखम
समझ से ज़ुदा रहे
हम फासले पर खड़े
होकर खुदा ढूढे गये
उसको मयस्सर नहीं
रोटियाँ दो जून की
हम पेटीएम की राह
उसका पता ढूढे गये
गर्दओ गुबार रास्तों की
चस्पाँ रही कपड़ों पर
बदहवास खुद में
नूर ए खुदा ढूढे गये
प्रीति राघव चौहान
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