बुधवार, 3 जनवरी 2018

चाँद

उसे चांद से कम
कुछ नहीं चाहिए
उसे क्या मालूम
चांद पर चट्टानों के सिवा कुछ भी नहीं
उसे क्या मालूम चांद पर परिया नहीं है
नहीं मिलेगी वहां कोई बुढ़िया
जिसकी दूर उड़ती रुई को वह ला कर देगी
और बदले में उसे मिलेगा
लोहे का जादुई बक्सा
चांद पर पथरीली नुकीली
चट्टानों के सिवा कुछ भी नहीं
उसे क्या मालूम वहां वह
हर कदम पर नापेगी छःपग
ना चाहकर भी होगी छलनी
कदम-दर-कदम
उसे क्या मालूम ...
इस चांद ने हर कल्पना को निगला है
धरती की गोद में बैठे जो चांद
बर्फ़ की चुस्की सा नजर आता है
वो हकीकत  में पत्थर है
चांद तक जाने वाली सीढ़ियां
चमकीली सीढ़ियां
वापसी पर
मल्टीप्लैक्स थिएटर के एग्ज़िट जैसी
पीकदार भी नहीं होती ..
वह खो जाती है
चांद के पत्थरों में
कहां से लाऊं वो बरतन
वह पानी जिसमें दिखे उसे चाँद....
प्रीति राघव चौहान

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