उसे चांद से कम
कुछ नहीं चाहिए
उसे क्या मालूम
चांद पर चट्टानों के सिवा कुछ भी नहीं
उसे क्या मालूम चांद पर परिया नहीं है
नहीं मिलेगी वहां कोई बुढ़िया
जिसकी दूर उड़ती रुई को वह ला कर देगी
और बदले में उसे मिलेगा
लोहे का जादुई बक्सा
चांद पर पथरीली नुकीली
चट्टानों के सिवा कुछ भी नहीं
उसे क्या मालूम वहां वह
हर कदम पर नापेगी छःपग
ना चाहकर भी होगी छलनी
कदम-दर-कदम
उसे क्या मालूम ...
इस चांद ने हर कल्पना को निगला है
धरती की गोद में बैठे जो चांद
बर्फ़ की चुस्की सा नजर आता है
वो हकीकत में पत्थर है
चांद तक जाने वाली सीढ़ियां
चमकीली सीढ़ियां
वापसी पर
मल्टीप्लैक्स थिएटर के एग्ज़िट जैसी
पीकदार भी नहीं होती ..
वह खो जाती है
चांद के पत्थरों में
कहां से लाऊं वो बरतन
वह पानी जिसमें दिखे उसे चाँद....
प्रीति राघव चौहान
यात्रा सिर्फ वो नहीं जो सुदूर देशों का दर्शन कराये । यात्रा वो है जिसमें आप स्वयं से मिलें, अपने मैं की जड़ तक पहुँचें उसे मर्दित कर आगे बढ़ें और दुनिया को एक नई दिशा दे पायें। तो चलें अनन्तयात्रा पर..
बुधवार, 3 जनवरी 2018
चाँद
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