हे मनु पुत्र,
तुम सृष्टि रचियता
बनो इसमें संदेह नहीं
धरा पुत्र कहलाओगे
ये इस धरिणी के
मूक वचन..
मंगल विजय करो
या बुलैट गति से घूमों तुम
बम बनाओ दुनिया भर के
या सागर माथा चूमों तुम
सकल सृष्टि से बेकल हो
ढूढोगे इस भू का स्पंदन
धरा पुत्र कहलाओगे
ये इस धरिणी के
मूक वचन...
गति में लय है माना
हैं रोमांचकारी ऊँचाई
विस्मयकारी लहरों की ताल
ना तुम्हें तनिक लुभा पाई
नंगे पैरों ओस पे चलके
करोगे वसुधा का वंदन
धरा पुत्र कहलाओगे
ये इस धरिणी के
मूक वचन...
माना तुम मुझसे
न किसी कोण
से मिलते हो
पुरुषार्थ तुम्हें प्रिय है सुत
ना धैर्य मही सा रखते हो
मानो न मानो मनु पुत्र
तुम होंगे मुझमें ही भग्न
और धरा पुत्र कहलाओगे
ये इस धरिणी के
मूक वचन...
प्रीति राघव चौहान
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