शुक्रवार, 27 अक्तूबर 2017

मौन

मौन

तोते टिटियाते नहीं
आलसी पग भी
दिन भर पड़ा रहता है
 अपने छोटे टोकरे में
मछलियाँ तो पहले ही 
बेजुबान नाचती हैं 
इधर से उधर 
घर में सभी प्राणी
जैसे बुद्ध के सानिध्य से उठ
चले आयें हों
खामोशियाँ खिलखिलाती नहीं 
अब तारक मेहता का कोई 
चश्मा लुभाता नहीं
स्प्राइट से सौ गुणा ज्यादा 
कूल हो चुके हैं हम

कभी कभार घर का कोई 
सदस्य फरमाईश के पत्थर 
फेंकता है घर की शांत झील में
बुद्धू बक्से और छ:इंच की स्क्रीन के
आगे पैर पसारे सभी 
रहते हैं नत मस्तक, मौन ! 
     प्रीति राघव चौहान 





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