माँ, गिरुँ अगर मैं बार बार
तुझको हर बार उठाना है
तुम रहना बन मशाल साथ
मुझे अपने लक्ष्य को पाना है
भूल भुलैया मेले ठेले
माना मुझको भरमायेगें
तेरी मशाल के जिन्दा जुगनू
हर पल राह दिखायेंगे
सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर
मैं आगे बढ़ता जाऊँगा
मानवता का परचम
पूरे जग में फहराऊँगा
लक्ष्य दिया तूने सेवा
दक्ष मुझे होना होगा
तप्त धरा से पीड़ा को
समूल नष्ट करना होगा
माँ हाथ मेरे माना छोटे
हर पीड़ित का बोझ उठाना है
सर्वश्रेष्ठ चिकित्सक बनकर
मुझे अपने लक्ष्य को पाना है
प्रीति राघव चौहान
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें