बुधवार, 25 अक्तूबर 2017

Kabhi Jindagi se Milo

कभी ज़िन्दगी से मिलो जो तुम
उसे इत्तला करना ज़रूर
कभी मैं खफा कभी वो खफा
कितनी दफा मरना हुज़ूर

जो सुबह मिली तो थी धानी सी
सरे शाम से थी सयानी सी
परिजात सी मैं बिखर गई
गिला आज भी है उसे जरूर

दीन ओ धरम भी निभाये हैं
और गीत ए फाग भी गाये हैं
कभी कहकशां सी थी चार सूँ
अब कहकशे काहे है गुरूर

ऐ ज़िन्दगी तेरा पता
तेरा पता है जो लापता
मेरा भी नमन हर बार है
मिली थी कभी बाकी है नूर
         प्रीति राघव चौहान

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